विश्व साहित्य संस्थान , क्रमांक :- 8
आज की रचनाएं , मंगलवार , 21/07/2020
विश्व साहित्य संस्थान, क्रमांक :- 8
"प्यार"
यह तो दर्शन का विषय है
प्रदर्शन का नही
प्रेम मीरा,कबीर,ग़ालिब, फरहान ने की,
किसी ने सरेआम इसे नीलाम न होने दी।
प्रेम तो पूजा है,वन्दन है,अभिनंदन है
प्रेम हर दीवाने के माथे का चन्दन है
प्रेम कलम है,दवात है,स्याही है
प्रेम परमात्मा की साक्षात् गवाही है।
प्रेम साधना है,जिंदगी का हवन है,
प्रेम मंदिर सा पवित्र भवन है।
प्रेम के नाम पे गले मिलते है सैकड़ों से
पर प्रेम करते नही कभी अपनों से।
प्रेम को बाजार का माल बना दिया,
फुट -पाथ पर लाकर इसे खड़ा किया।
कुछ तो शर्म करो नादानों,
प्रेम के मोल को कभी तो जानो।
गर प्रेम को सरेआम तुम बेच ही दोगे,
तो अपने लिए क्या खाक रखोगे?
★प्रवीण झा
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बात- बात पर लड़ैत एलहुँ
कहियो नहि हम भेलहुँ एक
जाति-पाति मे बंटि गेलहुँ
संस्कारकेँ देलहुँ कतओ फेक
जपैत छी हर- हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।
सीताक भाइ अहाँ छी,
राम केँ छी साला
मर्यादि आर त्यागी बनू अहाँ
खोलि अकलक ताला
जखन अहाँक बास दरभंगा
औ जपि फेर हर-हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।
विद्यापतिक गान अहाँ
मंडन-अयाचिक छी स्वाभिमान
मिसरी स' मीठ बोल "मैथिली"
सगरो बनल हमर पहचान
ली नहि बिनु मतलब केर पंगा
जपि नित हर-हर गंगा
करू नहि कहियो मारि आ दंगा।
गार्गी-भारती माइ -बहिन
जनक बनलाह हमर राजा
दर-दर केर तैयो ठोकर खाइत
आइ मैथिल बनल अभगला
पेटक सोहारी जुरय नहि
तन पर शोभय नहि अंगा
तैयो नहि मान बेचय ओ
बस रटैत रहय हर-हर गंगा
करय नहि कहियो मारि ओ दंगा।
✍प्रवीण झा
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★ओ मेरी प्यारी बहना★
मत लाना!
बाजार से वो राखी,
जो खूब चमचमाती हो
कैसे बंधबाऊँ
कलाई पे वो राखी,
जो अपने ही घर
गम को लाती हो
अपना प्यार तो छुपा है,
बस उन कच्चे धागों में,
क्यूँ खुशियाँ ढूँढती हो,
मरघट की फिजाओं में
बांध देना वही रुई वाली राखी,
जो बरसों पुराणी है,
देखो!उसमें छुपी
लाखों अमिट कहानी है
तेरे भाई को भी
वही राखी भाती है
मत लाओ!
बाजार से वो राखी
जो खूब चमचमाती हो
मत पड़ना उस चाल में,
जो चाल शैतानी है
वरना तेरे करोड़ो भाईयों पे,
संकट के बादल मंडरानी है
अपनी छोटी गलतियों से,
सैनिक भाईयों के घर,
मातमी सन्नाटा छाती है
मत लाना!
बाजार से वो राखी
जो बेहद चमचमाती है।
✍प्रवीण झा
#स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ
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#जिस्म_वाला_प्यार के जमाने में
सच्ची वफा की उम्मीद न करना किसी से
यहाँ दिल भी किराए पर लिए और दिए जाते है
कुछ दिनो के लिए
रूप-रंग, धन-दौलत के आधार पर
यहाँ हर कोई यही कहता है
मैं ऑरों सा बिलकुल नहीं
हॉ, हॉ...हो भी केसे सकते है
क्योंकि सब एक-पर-एक बीस है
कोई भी उन्नीस नहीं
इसीलिए सम्भल कर करना
दिल का सौदा
नफा-नुकसान पहले देखना
फिर ही करना ऐसा खेल
गलती से भी मत करना
कभी किसी से सच्चा प्रेम
वरना केवल पचतावा होगा
जब मिलेगा प्यार में धोका
✍ज्योति झा
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अरमानों की अर्थी
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ज्योति झा
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तुम जाना चाहते हो
तो बेशक जाओ....
एक बात मेरी भी सुनते जाना
डरो नहीं...
तुम्हे रोकने का दुस्साहस मैं कभी न करूगी
और ना ही अपने प्यार के वे झूठे सपने
जो बुने थे कभी साथ हमने
उसका वास्ता दूंगी
क्योंकी रोका तो इन्हे जाता है ना
जो आज्ञा लेने आए हो
उन्हे नहीं रोकते
जो अपना फैसला सुनाने आए हो
और, मेरे रोके तुम.. रूक जाओगे
ऐसा भ्रम... तो मुझे है ही नहीं
बल्कि जिस भ्रम में जी रही थी
वो भ्रम भी आज..
हॉ..आज टूट गया
तो ऐसी परिस्थति मैं कैसे सोच लूं
मैं यह, की तुम रूक जाओगे मेरे रोके
तुम मेरी सुनोगे ही क्यो अखिर
तुम अपना फैसला सुनाओंगे,
झूठे आरोप लगाओंगे
और मुँह फेर बड़े शान से चले जाओंगे
ना-ना..इस गलत फहमी में भी मत रहना तुम
कि तुमको भूली-बिसरी कस्मे-वादे याद दिलाउंगी
क्योंकि याद तो उन्हे दिलाते है
जो भूले हो कभी..
उन्हे नहीं..
जो जरूरत के आधार पर रिश्तों की
डोर तोड़ते-जोड़ते हो
बस इतनी सी बात कहनी है तुमसे
तुम जोओं..
बेझिझक हो जाओं..
मैं तुम्हारे प्रेम मार्ग की काँटा नहीं बनूगी
तुम बेखौफ आजाद हो कलियों पर मंडराओं
भवरे की भात्ति कभी इस डाल तो कभी उस डाल
पर तुम जरा सम्भल कर रहना
क्योंकि एक बहुत प्रचलित कहावत है
जो जैसा करता है
अक्सर वों वैसा ही पाता है
आज दिया धोखा किसीकों
तो कल अपने साथ भी हो जाता है
वैसे तो कमी किसी बात की नहीं तुम में
और किसी की भावनाओं से खेलना क्या होता है
उसमें जो निपुणता है तुमको
उसका तो बस..क्या कहना?
तुम चतुर बड़े यह ज्ञात मुझे
फिर भी जरा सम्भल कर चलना
फिर करना जब खेल किसी के दिल से
तो अपना दिल कही मत खो देना
कही खेल-खेल में हो ना जाए...ल
खेल तुम्हारे दिल के संग
देदे कही कोई तुम्हे भी धोका
फिर ना अश्क बहाना तुम
ज्योति झा
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প্রণাম 🙏:-বিশ্ব সাহিত্য সংস্থা
তারিখ :-16/07/2020
বার :-বৃহস্পতিবার
ভাষা :-বাংলা
শিরোনাম :-⛈️⛈️মেঘের মতন জীবন ⛈️⛈️
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
মেঘের দিকে তাকিয়ে দেখো বৃষ্টি যখন হয়।
মেঘের মধ্যে বজ্রপাত তাদের করছে শুধু ক্ষয়।
ক্ষয় হতে হতে উড়ে চলেছে একটি ঠিকানা তোরে।
ঠিকানা বুঝে মিলবেনা পড়বে বৃষ্টি হয়ে ঝরে।
ঝর্ণাধারা ঝরছে আজি মেঘে বজ্রপাতের গর্জন
মানুষের দিকে তাকিয়ে দেখো জীবনটা মেঘেরই মতন।
মেঘের মতো বৃষ্টি ঝরে আঁধার ভাঙ্গা রাতে
বুকের মধ্যে বজ্রপাত আঘাত এর দাগ কাটে।
দাগ কেটেছে এদিক ওদিক হয়েছে ভালোবাসায় ঘেরা
ভালোবাসাই বিষ হয়েছে তুলে দিয়েছে মুখে তারা
বিষ বুঝি ছড়িয়ে গেল গোটা সর্ব অঙ্গ।
সর্ব অঙ্গ চিতায় জ্বলে বৃষ্টি দেখাই রঙ্গ।
✍️....উজ্জল পন্ডিত।
গ্রাম :-ছত্রশাল ,থানা :-খানাকুল
জেলা :-হুগলি
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🙏 প্রণাম :-🙏বিশ্ব সাহিত্য সংস্থা
তারিখ :-17/07/2020
বার :-শুক্রবার
ভাষা :- বাংলা
শিরোনাম :-🕯️🕯️মোমের বাতি 🕯️🕯️
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ওগো সাধের আলো মোমের বাতি।
কেন তুমি কেঁদে চলেছে?
কিসের তুমি অপরাধী।
বিশ্ববাসী জ্বালিয়ে দিল
আলোয় ভুবন ভরা বলে।
নীরবে তুমি কেঁদে চলেছ।
চোখের জলে মোমের ফোটা ফেলে।
মোমবাতি কে বুঝি গলিয়ে দিল।
সুতো অগ্নিদগ্ধ হয়ে
বাতিতে আগুন জ্বালিয়ে দিলো
পূজার সন্ধ্যা বাতি বলে।
✍️উজ্জ্বল পন্ডিত
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कविता :- 16(99), दिवस :- मंगलवार, विधा :- कविता
नमस्ते 🙏 :- विश्व साहित्य संस्थान, दिनांक :- 21-07-2020
जितना हुआ उतना खुशियां ही बांट सका है ,
खुद प्यासा, पर दुनिया के लिए समंदर बना रखा है ।
बात नहीं काम मेरी पक्का है ,
इसीलिए तो मैं रोशन
अपनी अरमान सजा रखा है ।।
शायद मैं आऊं किसी का उपयोग ,
बनूं उपचार , बनूं न रोग ।।
कुछ ऐसा करूं ,
जाने के बाद भी खोजें मुझे लोग ,
सोचा हूं अरमान सजा कर ,
स्थापित करूं छोटा-मोटा उद्योग ।।
रोशन कुमार झा
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