विश्व साहित्य संस्थान , क्रमांक :- 10

विश्व साहित्य संस्थान , क्रमांक :- 10


विश्व साहित्य संस्थान

दिनांक :- 28/10/2020

दिवस :- बुधवार

ढाई आखर !

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कबीरा बोला ,

ढाई आखर प्रेम।

अन्तर्मन  में ।।


शबरी रोई ,

आओ मेरे रामजी।

आश्रम आज ।।


भीष्म का प्रण,

जान कृष्ण कन्हैया।

कूदे समर ।।


सुदामा - प्रेम ,

हरि हार दौड़े है ।

गले लगाए ।।


प्रेम के वश ,

भगवान रखते।

भक्त की आन ।।

०००


✍️  ----- गिरीश इन्द्र,

श्री दुर्गा शक्ति पीठ, अजुवाॅ, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२७.दि०-२८-१०-२०२० ई ०.




19/10/2020 , सोमवार


🙏অবুঝ মা 🙏


মেঘের মেলায় সূর্য খেলায় রোদ হাসে। 

মেঘে মেঘে সারাবেলা মেঘ ভাসে। 

মেঘ  বুঝি সাজলে আজ সাত রঙে। 

শরতের শেষ বেলায় আগমনে। 

⛈️⛈️⛈️⛈️

ওই বুঝি পরল কাঠি ঢাকাতে। 

ধুনুচি নাচ আর আরতিতে। 

পথের মাঝে শিশু গড়িয়ে কাঁদে। 

পুজোর জামা নতুন সাজে। 

😭😭😭

মা কাঁদে চোখের জলে পথ ভাসে। 

মা হয়ে মা শত্রু এই পুজোতে 

সাজের দোকানে যেন অবুঝ হয়ে থাকে। 

তাই বাছা পথের মাঝে শুয়ে কাঁদে। 

😭😭😭

✍️উজ্জ্বল পন্ডিত।



विश्व साहित्य संस्थान , 

दिनांक :- 01/10/2020 , दिवस :- वृहस्पतिवार


उत्पत्ति !

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उत्पत्ति आज,

श्रेयद होती देख।

विनाश नहीं ।।


उत्पत्ति होती,

मानवता - रक्षक।

परोपकारी।।


विकास होता,

परम मित्र जान।

उत्पत्ति - धाम।।


उत्पत्ति में है,

परम - सुख मान।

परमात्मा का।।


ग्रहण कर,

उत्पत्ति को मन से।

जगत - बीच ।।

०००


---- गिरीश इन्द्र,कोठिया , आजमगढ़, ऊ ०प्र०-


हम कारण नहीं बताएंगे।


तुम पूछ रहे हो  ,   क्यों इतना ।

जग नहीं आस , करता जितना।

बोलो किस - किस को यही बात,

इस जग में , हम     समझाएंगे  ।।


तुम आज रहो , रूठे  -    रूठे  ।

सारे सपने  ,    टूटे    ---  टूटे   ।

शब्दों   की  माला,  उर  तेरे   !

रूपसि  !   कैसे ,  पहनाएंगे  ।।


सीमा  पर  है  ,  आरती  हुई  ।

भारत  में  जब , भारती  हुई  ।

बलि वेदी पर , सिर कफ़न बांध,

हम  जाने  ,  कैसे       जाएंगे ।।

---- गिरीश इन्द्र, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

०००


हिन्दी !


हिन्द की जागीर हूं  , जयमाल    हिंदी हूं  ।

विजय श्री मनुजात्व की , पहचान हिंदी हूं ।

श्रीनगर से फैलती , कन्या - कुमारी   तक ।

डालती जन - गण मनस , में जान हिंदी हूं ।।


एक हैं हम , हिंदवी  ,  भाषा   हमारी है    ।

एकता के सूत्र  में  ,  गाथा     हमारी  है    ।

अरब सागर से  शुरू, बंगाल - खाड़ी तक ,

गर्व से  उन्नत  हुआ  ,  सम्मान हिंदी  हूं   ।।


राज - सदनों के मनस , में मै निवसती हूं ।

प्राथमिक विद्यालयों में , मै पनपती    हूं ।

उमगती हिमवान से हूं, गंग - सागर  तक,

भारती - संस्कार  की,जय - गान हिंदी हूं।।


मैं सिमटती जा रही हूं, साजिशों में आज।

आंतरिक - विद्वेष के, इन बंदिशों  में साज।

अचल - संस्कृति,सभ्यताओं की धरोहर मै,

हिन्द के अवतार  की , प्रतिमान हिंदी हूं  ।।

---- गिरीश इन्द्र,

    श्री दुर्गा शक्ति पीठ, अजुवाॅ ,आजमगढ़,

    ऊ ०प्र०-276127. 

    दूरभाष :8896239704/945969124.

    Email ojhag274@gmail.com

    दि०-06-09-2020 ई ०.

०००

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हिंदी - दिवस पर विशेष !

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हिंदी की महिमा !

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हिंदी की महिमा अमित , देखो देश - विदेश ।

गली - चौक से शहर तक,घूम    रहा  संदेश ।।

*

हिंदी सिर का मौर है , भाषाओं  की  जान ।

ज्योतित उज्ज्वल ज्ञान से, होती प्रकाशमान ।।

*

हिंदी भाषा है अमर , भारत   का   अभिमान ।

जन - जन का भूषण बनी, वाणी देव - विमान।।

*

हिंदी  हिंदुस्तान की , भाषा     है   अनमोल   ।

कितने मीठे सरस  है,लगते   इसके     बोल  ।।

*

हिंदी जैसी  है नहीं  , भाषा     जगती   बीच   ।

देख ! कमल सी खिल रही, है भारत के कीच ।।

*

सोने सी है आत्मा , चांदी  सी    है       जान ।

हीरे  जैसी देह  है  ,  हिंदी    की    पहचान  !।

*

हिंदी है परमात्मा  , करो   मंत्र   का   जाप ।

जय हिंदी - जय हिन्द का,देखो अतुल प्रताप।।

*

मन से मानो तुम इसे  , सेवा  कर    भरपूर  ।

जन- जन में  फैला इसे,बजा - बजा संतूर  ।।

----- गिरीश इन्द्र,कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

०००

दि०-१७-०९-२०२०.




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देश की पुकार !

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देश है पुकारता , सुनो हमारे  लाल - पाल !

लाल - लाल रक्त से , चमन यहां नहा रहा ।

शत्रु आ गया चढ़ा , अहा ! हमारे  उर - तल,

धार अस्त्र - शस्त्र की, नदी यहां  बहा  रहा।

अस्मिता गई , रसा गई, हमारी है    यहां न ,

अंतास हमारा देख - देख है    दहा     रहा  ।

वार पर वार अंब  भारती!  उरस       धार  ,

धार धीरता  महान ,  धीर   है   कहा  रहा ।।


द्वेष - भव आपसी , भुलाओ एक एक कर,

बलि - वेदिका अरे ! पुकारती तुम्हें   सुनो ।

आओ देश के हमारे , वीर भारती  महान ,

पल एक तो हमारा , कथ्य मन   में गुनो  ।

हिन्द हो मुसलमान, सिक्ख हो ईसाई या ,

कि पारसी पठान , बलवान अरि को धुनों।

वह हार जाए दर - दर , का भिखारी बन ,

जाल वह अक्षय , अजेय  मन   से  बुनो ।।


गर्व है तुम्हारे पर , वीर हे!  हमारे  लाल ,

भारती कहा महान शीश  को झुका नहीं।

बढ़ता गया कदम ,एक - एक - एक  कर,

शत्रु को धकेलता गया, कभिं  रुका नहीं।

खाय - खाय गोलियां,अनेक उर मध्य देख,

धार त्रय रंग ध्वज , है  कहीं     ढुका  नहीं।

जानिसार हो गया , हमारे पर  मेरा  लाल ,

देश जय बोलता , पुकारता   लुका   नहीं ।।

-------- गिरीश इन्द्र,

          कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

०००

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विश्व साहित्य संस्थान , 

दिनांक :- 15/09/2020

दिवस :- मंगलवार

हिंदी !

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हमारा   मान है     हिंदी  !

सतत  संमा है      हिंदी  ।।


बसी  है इस तरह मन में ।

हुई   जय - गान  है हिंदी ।।


मनस  में    मान  बैठाओ।

हमारी     शान     है हिंदी।।


अजब अग्रेजियत   अाई ।

हुई गत - प्राण है   हिन्दी ।।


गई घर  सुर - मीरा     के ।

हुई  रस  -  खान है हिन्दी।।


हुए तैयार  अब हम  तो   !

हुई   ईशान    है    हिन्दी।।

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हिंदी मेरी जान है ।।

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हिंदी मेरी जान है ।।


हम सबकी भाषा है सुन्दर ।

देश देश है , सात समुंदर   ।

खोजा  घूम - घूम  कर देखा !

हम सबका , अभिमान  है  ।।


पंछी  नित हैं कलरव करते !

हिंदी में अपना मन    धरते ।

करें प्रसार और मिल गाएं !

हम सबका  सम्मान    है ।।


बोल - चाल में हम अपनाएं।

गाॅव - गाॅव सबको समझाएं।

हिन्द देश  में    रहने   वालों,

हिन्दी तन - मन - प्राण  है ।।

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--------- गिरीश इन्द्र,

          कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

०००


रचना !

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 रचना यह संसार है , ईश्वर    रचनाकार   ।

जप करें  नैया को लगा,भव सागर से पार ।।


मित्र ! मान लो मनस  में,सत्य नहीं मजमून।

हो जाएगा मामला,   सभी    तथ्य से सून  ।।


जीवन भर का आपने, ठेका लिया कहीं न ।

लंबी है यह  दास्तां , यह  सिद्धांत  महीन  ।।


पाप - पुंज पृथ्वी बढ़ा,हुआ विकल संसार।

आ जाओ प्रभु धार लो, एक नया अवतार।।


मन - मुरली को टेर दो, हे !  मेरे घनश्याम ।

रोम - रोम जपता रहे,  मोहन ! तेरा नाम ।।


प्रेम सदा धारण करो, बोलो      मीठे  बैन   ।

छोटी छोटी बात पर, नहीं       तरेरो   नैन   ।।


त्याग हास - उपहास को,और करो कुछ काम।

चाहे राधेश्याम हो ,   या     हो     सीताराम  ।।


नहीं वास्तविकता यहां, कहीं  कल्पना जान ।

पहले कर अपने लिए , बारह   तला मकान ।।


जागरूक मानव हुआ,  चौकन्ना      संसार   ।

निश्चित ही हो जाएगा,  अब तो बेड़ा   पार  ।।


मुक्ति दासता से मिली , मानवता को आज ।

आंखें  पथराई  हुई ,  नम  लेे अश्रु - समाज ।।


वायु फूल बहती धरा , कण - कण है आजाद।

नीर धार बादल चले , झूम - झूम  सुख  लाद।।


बलिदानों की ओट में,  यह विकास की राह ।

रोटी घर - पर में हुई ,  जन - मानस की चाह।।


रवि आया,पंछी उड़ ,  खोल गगन  के द्वार   ।

आस - पास मंडरा रहे , मान न अपनी हार ।।


जगत नियंता की सके , को  कर रक्षा- पाल ।

धार शीश वसुदेव है,  लिए  देवकी     लाल  ।।


पाद - परस यमुना थकी, अपलक नैन  निहार।

चाह  यही ,  उर डाल दे , मोती - माणिक हार।।

      ------ गिरीश इन्द्र,

             कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

       कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

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 जीवन - परिचय.

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नाम : गिरीश चन्द्र ओझा,

उप- नाम : गिरीश इन्द्र,

जन्म - तिथि : 29/04/1964 ई 0. 

माता : स्व० कमलावती देवी,

पिता : स्व० विश्वनाथ ओझा,

शिक्षा : इंटरमीडिएट सह हिंदी पत्रकारिता.

अभिरुचि : साहित्य - सृजन,

व्यवसाय : कर्मकाण्ड,

प्रकाशित कृतियां : राम समर्पण,श्री गुरु चालीसा,सरल गायत्री साधना,गजराज पुकारे हरि आए,सरस्वती चालीसा,शक्ति माला,सीताराम ब्रह्म चालीसा,सुम�



आशीष कुमार झा जी 

🙏প্রণাম:- বিশ্বসাহিত্য সংস্থা 🙏

তারিখ :-03/09/2020

শিরোনাম :-আজকের সকাল 

আজকের সকাল মেঘে ঢাকা বেলা। 

সূর্যের আলো এসে জলে করে খেলা। 

আকাশে বাতাসে ধোঁয়া ধোঁয়া ভাব। 

এ যে ধোঁয়া না কুয়াশা শরতকালের প্রকাশ। 

আজ যেন সূর্যকে দেখাচ্ছে অন্যরকম। 

নদীর পাড়ে কাশফুলে সেজেছে বোন জঙ্গল 

কাশফুলে দোলা দিয়ে শরতের হাওয়া। 

জলেতে সূর্য খালে সকালবেলা। 

জলে বুঝি নাড়া দেয় ওই এক জেলে। 

মাছকে ধরবে তার ওই দুই লাঠি জালে 

রাস্তা শুনশান কেউ  নেই কোথাও। 

বাঁশতলায় পাখিগুলো কিচিরমিচির গান গায়। 

আজ যেন তাদের মনে কত আনন্দ 

সুন্দর সকাল দেখে হলাম ধন্য। 

✍️উজ্জ্বল পন্ডিত।


প্রণাম 🙏বিশ্বসাহিত্য সংস্থা 🙏

তারিখ :-01/09/2020

বিষয়  :- কবিতা 

শিরোনাম :-মানুষের চিন্তা 


সবুজে ঘেরা বিশ্ব  বাংলা, 

জলে ভরা নদী।

খেতে ভরা চাষের ধানে 

জলে মগ্ন সবি 

মেঘে ভরা আকাশ বাতাস। 

বৃষ্টি অবিরত ঝরে। 

মানুষের কপালে হাত। 

করোনা ভাইরাস আর বন্যার তোরে। 

বন্যা তো দু'চারদিনের আবার ঠিক হয়ে যাবে। 

করোনাভাইরাস সৃষ্টি হয়েছে মানব জাতিকে  ধ্বংস তোরে । 

ধ্বংস করাকি মুখের কথা সংক্রমণ ঘটলেই হয়ে যাবে ?

আরে করোনা তোর মৃত্যু কোন মরন অস্ত্র তেই তেই হবে 

সৃষ্টি হলে ধ্বংস হবে এই কথা জেনে রাখ। 

করোনা মুক্ত হবে পৃথিবী এ আমার বিশ্বাস। 

✍️উজ্জ্বল পান্ডে।


कविता !


दिनांक :- 27/08/2020  वृहस्पतिवार


देश हमारा है !

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 जन जन की , आंखों का तारा ,  देश हमारा है  ।

घर - घर का नंदन - वन न्यारा ,   देश हमारा है  ।।


उत्तर में हिमवान खड़ा ,    प्रहरी है सीना ताने   ।

दक्षिण में पग सिन्धु पखरे , है यह दुनिया जाने ।

गिरि अरावली भुज धारे, पूरब - पश्चिम सारा है 


गंगा - यमुना - सरस्वती , जिसकी है पावन धारा।

एक विश्व - बंधुत्व भावना ,    का संदेश   हमारा  ।

जिसको अमृत बांट रहा, दिन - रात सिन्धु खारा है।।


सत्य - अहिंसा का पावन ,  संदेश जहाॅ पर जन्मा ।

देह धार कर जन्म लिया , ईश्वर जो   रहा   अजन्मा।

अगणित अग - मग जीवों को, पल में जिसने तारा है।।


लाल बाल हैं पाल जहां पर , बलिदानी   कहलाए  ।

फाॅसी के फंदे पर झूले , अपना    मन     बहलाए  ।

तान दिया है कफ़न भारती, माॅ ने अपना प्यारा है ।।


 आॅख उठी इसपर जिसकी,वह  आॅख निकालेंगे।

 शीश बढ़ा सीमा में जो ,  वह   शीश      उतारेंगे।

अरि के लिए  हमारा  उपवन , यम का    द्वारा है ।।

------ गिरीश इन्द्र,

       कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

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 स्वाभिमान !

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हम स्वाभिमान हैं  भारत के ,

भारत  अपना प्रिय स्वामी है ।

तन - मन से  हैं ,  रक्षा करते ।

अन्तर्मन  से  ,  अनुगामी  हैं ।।


निज रक्त - बिंदुओं से मा की,

घाटी - घाटी  को,  सींचा है  ।

अपनी आंखों में , ममता को ,

दोनों हाथों से  ,    भींचा  है ।।


ले काश्मीर से ,  दक्षिण तक ,

कोई  इसका  , प्रतिपक्ष नहीं।

जो दे दे टक्कर , भारत को  ,

दुनिया में ऐसा  , वक्ष  नहीं  ।।


हिमवान छत्र बन, शीश  भाग,

की पल - पल , रक्षा करता है।

पग सिन्धु नित्य, कर प्रक्षालन,

तम - रज को , भक्षा करता है।।


आलिंगन कर , भुज   अरावली ,

निज अंक - पाश में अरि को भर।

करके अरि - मर्दन , चरर - चरर ,

परण ,यम - दण्ड  , पाश से हर ।।


है  भारत !  दो ,  आशीष    हमं ।

सीमा पर चल,   चल चल गाएं  ।

तानें  सीना  ,  अरि  के   समक्ष ,

जय देश  ! देश ,बलि - बलि जाएं।।

०००


------ गिरीश इन्द्र,

       कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

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भाई ,

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भाई होता ,

अपनी जान से भी।

बढ़कर के ।।


दसकंधर ,

कुंभकर्ण थे भाई ।

जग जानता।।


भाई का भाई।

हितू  और दुश्मन।

होता नहीं है ।।


भाई का भाई ,

किसी भी समय में।

भर न होता।।


भाई भाई का,

काटता है सिर भी।

होता ऐसा भी।।

----- गिरीश इन्द्र,

      कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.


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दोस्ती ,

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दोस्ती होती है ,

दांत काटी रोटी भी।

वास्तविकता ।।


दोस्ती करो जी !

कृष्ण - सुदामा जैसे।

सिद्धान्त जान।।


दोस्ती होती है,

खार की कारक भी।

संभलकर ।।


दोस्ती की बात,

जगत बीच होती।

कान खड़े हो।।


दोस्ती मिशाल।

जगत बीच होती ।

उत्तम बात ।।

--- गिरीश इन्द्र,

     कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

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तृष्णा !

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तृष्णा होती है।

सतोगुण की शत्रु !

विचार मन ।।


तृष्णा होती है।

पतन की कारक।

जगत भर ।।


तृष्णा कथन,

जागी सिया - मन में।

कंचन - मृग ।।


प्यासा मन !

जल कहीं नहीं है ।

अग - जग में।।


प्यास मन की,

बुझाने को साध ले।

यह साधना।।

---- गिरीश इन्द्र,

      कोठिया,आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

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हे राम !

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हे राम !  अवध   मे    आओ  ।।


पर - पीर    देख   खुश होते  ।

उनके बच्चे  ,  जब       रोते  ।

जब  आग , कहीं पर लगती ।

मन को   खुशहाली   जगती ।

सुत जिए  , पिता  के  आगे  ,

अब  ऐसा  ,  नियम   बनाओ।।


हर फूल  - समाता  घर    हो ।

अंदर से  हो ,  बाहर      हो  ।

तरु  फूल -  फले ,  बें मौसम।

यह  सत्य नियम, कायम  हो।

मर्यादा  की  ,    रक्षा       में,

अपना  कर - पाॅव  लगाओ ।।


अब कामधेनु  , घर - घर हो।

पय - पूर   मही, सर्वर     हो ।

माखन - मिश्री , सब    खाएं ।

पल - पल  ,   आनन्द मनाएं ।

चाहो  तुम   जहां,   वहां से  ,

मंगल - घड़ियां ,  लेे  आओ।।

------- गिरीश इन्द्र,

        कोठिया , आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

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वन्दे मातरम !

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मनस  के   द्वार कुछ  खोलो  !

कि   वन्दे  -  मातरम  बोलो ।।


मनस  - बच - कर्म से अपना।

समझ कर ,खोल  दो  सपना ।

विधाता  की ,  कृपा     होगी ।

सफल  हो , राम का  जपना ।

अगर  पिक - सुर   नहीं है तो,

जगत मत , का�




किसान !

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किसान आज,

महत्व का होता है।

जगत देख ।।


पिसा जा रहा,

देश का किसान ही,

सबसे आगे ।।


सुनता कोई,

किसान की नहीं है।

आज विश्व में।।


किसान बोले।

खाते हैं टोपी वाले।

नाच कर के।।


आज मन दो।

किसान की कर दो।

बेड़ा पार है।।


---- गिरीश इन्द्र,कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२७.

दि -२०/०८/२०२० ई ०.


প্রণাম 🙏বিশ্ব সাহিত্য সংস্থা 🙏
তারিখ :-27/08/2020
বিষয় :-কবিতা
 শিরোনাম :-বন্যা 

করোনা আজ চলন্ত মানবজাতিকে থমকে দিয়েছে। 
তারি সাথে পাল্লা দিতে বর্ষা নেমেছে। 
এ যেন বর্ষা নয় পাহাড় ভাঙা ঝরনা।
রূপনারায়ন নদীর বাঁধ ভেঙ্গে খানাকুল প্লাবিত বন্যা ।
গৃহ গেল জলে ভেসে ভাঙলো বাড়ি ঘর। 
গৃহবাসী বুকের মধ্যে উঠেছে বুঝি ঝড় ।
ঝড়ের মুখে পরলো বুঝি বিশ্ব ভারত বাংলা। 
চারিদিকে শুধু শোকের ছায়া দুঃখ আর কান্না। 
একে একে বিপদ এসে ঘিরে ধরেছে? 
মৃত্যু বুঝি দুয়ারে এসে হাত বাড়িয়েছে। 
মৃত্যু বুঝি হাতছানি দেয় করোনার আবহাওয়া। 
তারই মধ্যে বন্যা আবার আর এক দুঃখের ছায়া। 

✍️উজ্জ্বল পন্ডিত।


প্রণাম🙏 বিশ্ব সাহিত্য সংস্থা 🙏

তারিখ 20/08/2020

বিষয়:- কবিতা 

শিরোনাম :-মানুষ সত্য 


জাতের বড়াই করো তোমার জাত বল কি? 

রক্তে মাংসে গড়া মানুষ আমরাই জাতের বিভেদ করেছি ।

জাত কেউ বড় না কেউ ছোট না আমরা সকলে মানুষ 

বিবেকানন্দ রামকৃষ্ণ প্রমাণ দিয়েছে তার স্বরূপ। 

যারা মানুষের মধ্যে বিভেদ দেখেনা জড়িয়ে ধরেছে সবাইকে বুকে 

তারাই তো আসল মানুষ হয়ে পূজিত হচ্ছে রামকৃষ্ণ-বিবেকানন্দ রূপে। 

তারা সরল কথাবলে লোকের বিভ্রান্তি করে দূর 

মানুষের মধ্যেই ভগবানের বাস সত্য আসল মানুষ। 

জীবে শিবে এক করে ঘুচালো বিভেদ। 

একই রক্ত বইছে শরীরে শরীরে। 

আল্লাহ ,গড ,ভগবান আমরা যেভাবে তাকে ডাকি। 

কৃষ্ণকালি একি রূপ কেউ কৃষ্ণ বলে কেউ কালী বলে দেখি। 

জাতপাত দূরে সরাও সকলকে করো আপন। 

দেখবে তোমার পৃথিবীতে জায়গা হয়েছে  অন্যরকম। 


✍️উজ্জ্বল পন্ডিত 

গ্রাম:-ছত্রশাল / হুগলী 

মোবাইল নাম্বার:- 8389828147



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हे रास !

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 हे रास !  अवध में आओ !!


पर - पीर देख , खुश   होते ।

उनके बच्चे , जब      रोते  ।

जब आग  कहीं पर लगती ?

उनको खुशहाली    जगती ।

 सुत रहे   पिता के   आगे ।

अब  ऐसा नियम  बनाओ ।।


हर फूल  समाता घर   हो  ।

अन्दर से हो , बाहर   हो   ।

तरु फूल  - फले  बेमौसम ।

यह सत्य नियम हो  कायम।

मर्यादा   की    रक्षा      में  ,

अपना  कर - पांव लगाओ।।


अब कामधेनु घर - पर   हो।

पय - पुर  मही , सत्वर  हो।

माखन - मिसरी सब खाएं ।

पल - पल आनन्द  मनाएं ।

चाहो तुम जहां, वहां   से  ,

मंगल - घड़ियां , लेे   आओ।।


---- गिरीश इन्द्र,कोठिया, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२४.

०००

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প্রণাম 🙏বিশ্ব সাহিত্য সংস্থা। 🙏

তারিখ :-17/08/2020

বিষয় :-কবিতা

শিরোনাম :-অনাথ আশ্রম। 


অনাথের নাথ তুমি প্রভু ওগো ভগবান। 

কিসের অপরাধী শিশুগুলি হয়েছে অনাথ 

পথে পড়ে থাকা শিশু অনাদরে। 

কাঁদিছে মা মা বলে চিৎকার করে। 

কেমন ওগো মা তুমি পাষান জননী ?

শিশুকে পথে ফেলে তুমি কি হলে মহারানী। 

করেছ তুমি পাপা শিশু তো দোষী  না। 

তোমার পাপের ফসল এযে  খাঁটি সোনা। 

খাঁটি সোনার দাম তুমি কি দিতে পারবে। 

অনাথ আশ্রম এ নিজেদেরকে গড়ে দেখাবে। 

কেউ  হয়েছে ডাক্তার  কেউ বা ইঞ্জিনিয়ার। 

নিজের মাকে ভুলে পেয়েছে এক অনাথ পরিবার। 

পরিবার আছে শুধু ভালবাসায় ঘিরে। 

একে অপরকে ভালোবেসে আঁকড়ে ধরে। 


✍️উজ্জল পন্ডিত 

গ্রাম :-ছত্রশাল/ হুগলি 

মোবাইল নাম্বার :-8389828147

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প্রণাম🙏 বিশ্বসাহিত্য সংস্থা 🙏

তারিখ :-16/08/2020

শিরোনামঃ -স্বাধীনতা

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

ঝিরি ঝিরি ঝরনা ধারা বহিছে ভুবনে। 

আকাশে বাতাসে সুর উঠেছে স্বাধীনতার গান। 

গানে গানে মনেপ্রাণে তোমাদের জানাই প্রণাম 

15 আগস্ট স্বাধীন পতাকা ও বীর সেনাদের স্যালুট জানাই। 

ফুল আর চন্দন দিলাম তোমাদের চরণে 

গানে গানে স্মরণ করিলাম তোমাদের নামে

তোমরাতো বীর সেনা ভারতের মহান। 

তোমাদের জন্যই পেল তেরঙ্গা  ভারতে সম্মান। 

তোমরাইতো ভারত মাকে করলে ওগো  মুক্ত। 

নিজেদেরকে বলি দিয়ে ঝরালে বুকের রক্ত। 


✍️উজ্জ্বল পন্ডিত

গ্রাম :- ছত্রশাল /হুগলি 

মোবাইল নাম্বার:-8389828147



विश्व साहित्य संस्थान

दिनांक :- 15/08/2020

दिवस :- शनिवार

विधा :- हाइकु


हम आजाद,

**********


हम आजाद,

कब हुए हैं आज।

पीछे लगे हैं।।


डाल - चावल,

के भाव ऊपर से।

सब्जी न खाओ।


धमकी दिया,

वह आना कभीं भी।

सोच समझ।।


कैसी है यह,

आजादी मनाना हे !

अन्तर्मन में।।


मानक नहीं,

यह है भुलावा एक।

हम आजाद।।


✍️--- गिरीश इन्द्र, आजमगढ़,उ०प्र०-२७६१२७.

०००



প্রণাম 🙏:-বিশ্ব সাহিত্য সংস্থা 🙏

বার :-মঙ্গলবার

 ভাষা:- বাংলা

 বিষয়ে :-কবিতা 

 শিরোনাম:- জন্ম অষ্টমী 

.....................................................

আজ চারিদিকে রঙে রঙে ভরে গেছে ফুলের মেলা। 

জন্ম অষ্টমীর নানা রঙের খেলছে চাঁদকে ঘিরে তারা মালা 

কৃষ্ণ যেন চাঁদের গায়ে বাঁশি ওগো বাজায়। 

ধর্মরাজের মন্দিরে ভজন কীর্তন গান উজ্জ্বল গায়। 

ফুলে ফুলে আতপ চন্দনে  রাধা-কৃষ্ণকে সাজাবো।

নারকেল নাড়ু ,তালফুলুরি ক্ষীর, দুধ ,ননী কৃষ্ণকে খাওয়াবো। 

আজ সারারাত ধরে হবে রাধা রাধা হরে কৃষ্ণ নাম। 

সকল ভক্ত বলবে হরি বলে জোড়াই মন ও প্রাণ। 

প্রাণ সঁপেছি তোমার কাছে মন সঁপেছি তোমায়। 

কলিযুগের দ্বারে দ্বারে কৃষ্ণ কৃষ্ণ বলে হরি নাম বিলায়। 

হরিনাম ছাড়া জীবের গতি নাই আর। 

হরিনাম যাবে সাথে শেষ মুহূর্ত পর্যন্ত ভাই। 

সময় থাকতে করো এই হরিনাম। 

কখন উড়ে যাবে খাঁচা থেকে পাখি জানে না মন প্রাণ 

যদি খাঁচার পাখি কোনদিন পোষ মানে। 

গাইবে সেদিন গান রাধা রাধা নামে। 


✍️ উজ্জ্বল পন্ডিত

 গ্রাম:- ছত্রশাল / হুগলি 

মোবাইল নাম্বার :-8389828147

11/08/2020 मंगलवार



दिनांक :- 04/08/2020
दिवस :- मंगलवार

राधा रानी का भजन, मन अब करना।
महा रानी का भजन मन अब करना।।

मिलता महान दुख , इस दरबार में।

खिलता मनस  इस, सरकार में ।
सुख से भरा व्यजन , मन अब करना।।

मन से , वचन कर से, अहित करना।
मन से सुधर, मन नित हित करना।
छिती जल से सुघर, तन अब करना।।

पल - पल जप , अपना सफल करना।
नित नेम धरना,न आज कल करना।
निज सफल रतन, धन अब करना।।

फिर कल न , समय कुछ मिल पाएगा।
जब हरि के भवन, सज - धज जाएगा।
तब किसका जतन , मन अब करना।।

✍️ --- गिरीश इन्द्र, आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२७.
००
छिती जल से , सुघर तन अब करना

প্রণাম🙏 বিশ্ব সাহিত্য সংস্থা 🙏
তারিখ 04/08/2020
বিষয়:- কবিতা
 শিরোনাম :-শুধু তোমায় 

❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

এই মেঘলা দিনে অন্ধকারে  বৃষ্টি যখন ঝরে। 
শুধু তোমায় মনে পড়ে, শুধু তোমায় মনে পড়ে। 
এই মন বুঝি হাই ব্যাকুল হলো মেঘলা দিনের তরে। 
শুধু তোমায় মনে পড়ে, শুধু তোমায় মনে পড়ে। 
এই মন বুঝি হারিয়ে গেছে মেঘের স্রোতে ভেসে। বৃষ্টি হয়ে পড়ছে ওগো তোমায় ভালোবেসে। 
শুধু তোমায় মনে পড়ে ,শুধু তোমায় মনে  পড়ে।
জীবনের গান লিখেছি জলসা ঘরে বসে 
কবিতা আজ গান হয়ে তোমায় ভালোবেসে। 
এই মেঘলা দিনে অন্ধকারে বৃষ্টি যখন ঝরে 
শুধু তোমায় মনে পড়ে ,শুধু তোমায় মনে পড়ে।

✍️  উজ্জ্বল পন্ডিত
গ্রাম :-ছত্রশাল/ হুগলি 
মোবাইল নাম্বার :- 8389828147

दिनांक :- 04/08/2020 ,दिवस :- मंगलवार

घर , बाड़ी , सरकारी , तरकारी 

इस कोरोना काल में हुआ यह रूप ज़ारी ,
करो तो करो नौकरी सरकारी 
या बेचों तरकारी ,
सच में यह बात है कितनी प्यारी ।।

बनाकर रखों घर द्वार बाड़ी ,
तब कभी न रहेगी ये हाथ खाली ।
ये सब न तो रोशन सुनोगे 
घर-परिवार से गाली ,
यही बताने तो आया रहा ये कोरोना महामारी ।।

बचा कर रखों धन , बनों धन की पुजारी ,
धन ही तो काम करवाती है जितनी काम सारी ।
जिसके पास कुछ न उसी के दिन है भारी ,
सरकारी न तो तरकारी या बनाकर रखों घर द्वार बाड़ी ,
यही दुनिया को बतलाने आया रहा 
कोविड - 19 चीनी बीमारी ।।

✍️ रोशन कुमार झा 
कविता :- 17(13)

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